MP : बीमार मां को लेकर बच्चे 3 अस्पतालों में 2 दिन भटके; चौथे दिन बेड मिला, मौत

Share on :

भोपाल। कोरोनाकाल में इंसानियत भी मरती जा रही है। प्राइवेट अस्पताल हों या सरकारी, सभी जगह बेपरवाह सिस्टम अब लोगों को मार रहा है। भोपाल के कोलार की 43 साल की संतोष रजक इसी बेपरवाही का शिकार हो गईं। वे दो दिन अस्पतालों में आईसीयू बेड के लिए भटकीं। जैसे-तैसे बेड मिला तो ठीक से इलाज नहीं हो पाया। अंत में उन्होंने गुरुवार को दम तोड़ दिया।

बंसल में एक रात के इलाज का 41 हजार रु. बिल भरा
12 सितंबर की शाम करीब 6 बजे मां को सांस लेने में परेशानी हुई तो हर्ष उन्हें सिद्धांता अस्पताल ले गया। यहां हार्ट अटैक के लक्षण बताए तो हम रात 10 बजे बंसल अस्पताल ले गए। यहां कोरोना का सैंपल लिया गया तो रिपोर्ट पॉजिटिव आई। यहां कोविड आईसीयू बेड नहीं हैं, इसलिए अगले दिन दोपहर तीन बजे हमें एंबुलेंस से जेके अस्पताल भेज दिया गया। बंसल में एक रात के इलाज का हमने 41 हजार रु. बिल भरा। जेके में भी आईसीयू बेड खाली नहीं थे, तो उन्होंने भर्ती नहीं किया।
जेके से हमें हमीदिया भेजा, तो वहां रात 9 बजे तक हम बेड का इंतजार करते रहे, लेकिन बेड खाली नहीं होने का कहकर हमें लौटा दिया। फिर हमने पीपुल्स अस्पताल में फोन लगाया तो पता चला, वहां आईसीयू बेड खाली हैं। हम रात 10:20 बजे पीपुल्स हॉस्पिटल पहुंचे। यहां मरीज को भर्ती करने के पहले पांच दिन के 50 हजार रु. जमा करा गए।
यहां इलाज महंगा पड़ता, इसलिए 14 की सुबह हमने कलेक्टर अविनाश लवानिया को आवेदन किया। उनके दखल के बाद मां को 14 सितंबर को दोपहर में जेपी अस्पताल के आईसीयू में भर्ती किया गया। लेकिन, यहां भी इलाज के नाम पर खानापूर्ति हुई।

मां की डेथ हुई, तब भी किसी ने हाथ नहीं लगाया
यहां रात में अक्सर ऑक्सीजन की सप्लाई बंद हो जाती है, कोई सुनता नहीं है। ऑक्सीजन सिलेंडर खत्म होने पर मरीज के परिजन दूसरे वार्ड से खुद ही लाते हैं। 10 दिन इलाज के बाद जब गुरुवार को मां की डेथ हुई, तब भी किसी ने हाथ नहीं लगाया। हमें आईसीयू में बुलाकर पीपीई किट थमा दी और कहा- खुद पहन लो और अपनी मां को पहना दो। मेरे भाई और परिजनों ने पीपीई किट पहनकर मां को पैकिंग बैग में रखा, फिर उन्हें एंबुलेंस से विश्राम घाट लेकर गए।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *