भाजपा की दमोह में करारी शिकस्त के बाद सुलगते सवाल
गोपाल स्वरूप वाजपेयी
आसमान में उडऩे की मनाही नहीं है किसी को,
शर्त इतनी है कि जमीन को नजरअंदाज ना करो ।
एक शायर की ये पंक्तियां मध्यप्रदेश के दमोह उपचुनाव में भाजपा की अप्रत्याशित हार के बाद प्रासंगिक हो रही हैं। वैसे विधानसभा की किसी भी एक सीट पर हार-जीत होना अमूनन सामान्य घटना मानी जाती है। लेकिन दमोह उपचुनाव में भाजपा की करारी शिकस्त को सामान्य घटना नहीं माना जा सकता। एक तरफ सर्वसुविधा संपन्न चतुरंगिणी सेना, दूसरी तरफ हताश-निराश व बेमन से मैदान में उतरी सेना। एक तरफ सत्ताबल, धनबल, प्रशासन का बल और दूसरी तरफ सिर्फ चुनाव लडऩे की औपचारिकता। इसके बाद भी जो चुनाव नतीजा सामने आया, उससे भाजपा खेमे में खलबली मच गई। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, पूर्व मुख्यमंत्री उमाभारती, प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा सहित प्रदेश के 20 से ज्यादा कैबिनेट मंत्री, 4 केंद्रीय मंत्री, भाजपा संगठन ने पूरा दमखम लगाया। सीएम शिवराज का एक पैर भोपाल में तो दूसरा पैर दमोह में रहा, प्रदेश के अधिकांश कैबिनेट मंत्री, वीडी शर्मा अपनी फौज के साथ 15 दिन डेरा डाले रहे। फिर भी करारी शिकस्त! कांग्रेस प्रत्याशी अजय टंडन ने भाजपा प्रत्याशी राहुल लोधी को 17 हजार से ज्यादा वोटों से हरा दिया। अब भाजपा झेंप मिटाने के लिए चाहे कुछ भी तर्क दे, बहाने बनाए, लेकिन सवाल सुलगने लगे हैं। आने वाले समय में ये सुलगते सवाल भाजपा के लिए नासूर बनेंगे अगर सही जवाब नहीं तलाशे गए और उन पर ईमानदारी से काम नहीं किया तो…! क्या दमोह की करारी शिकस्त के बाद भाजपा कुछ सबक लेगी? क्या भाजपा जनभावनाओं से खिलवाड़ कर सत्ताप्राप्ति व चुनाव में फतह की सनक व नशा दूर करेगी? क्या भाजपा नेताओं व कार्यकर्ताओं में सत्ता का दंभ सार्वजनिक नहीं होने लगा? सत्ता के दंभ का इस्तेमाल केवल निजी स्वार्थों को पूरा करने के लिए हो रहा है, क्या इसे जनता नहीं समझ रही? क्या मध्यप्रदेश में सीएम शिवराज की लोकप्रियता का सूर्यास्त हो चुका है? क्या सीएम शिवराज के खिलाफ पार्टी में कई लॉबी काम कर रही हैं? क्या दमोह की हार शिवराज की कुर्सी छिनने की वजह बनेगी? क्या सत्ता व संगठन में तालमेल सिर्फ दिखावे के लिए है? क्या सत्ता में सिंधिया गुट की ज्यादा दखलदांजी से पार्टी में असंतोष पनप रहा है? क्या प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा जिला इकाइयों को सक्रिय तरीके से संगठित करने में नाकाम साबित हो रहे हैं? वीडी शर्मा को काम करने का फ्रीहैंड नहीं है? क्या दमोह की हार निकट भविष्य में होने वाले निकाय चुनाव में असर दिखाएगी? कोरोना की दूसरी लहर के दौरान लाशों का अंबार लगने से जनता में शिवराज सरकार के खिलाफ आक्रोश नहीं है? क्या दमोह चुनाव की कीमत पर शिवराज सरकार ने प्रदेश को मौत के मुंह में धकेला? सिर्फ अप्रैल माह में प्रदेश के अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी से सौ से ज्यादा लोगों की मौत का जिम्मेदार कौन है? कोरोना से हो रही मौत के आंकड़ों को छिपाने से जनता के बीच शिवराज सरकार की छवि धूमिल नहीं हो रही है? अस्पतालों से लेकर श्मशान घाटों तक जिंदा इंसानों व मृतकों की दुर्दशा के लिए किसे जिम्मेदार माना जाए? कोरोना कफ्र्यू के दौरान जरूरी काम से घर से निकले लोगों पर अफसरों ने जमकर गुंडागर्दी की, क्या इन घटनाओं से राज्य सरकार व भाजपा के प्रति लोगों में आक्रोश नहीं बढ़ा?
दमोह में शिवराज सरकार और संगठन ने पूरा दम लगाया। यहां तक कि दमोह से लगे आठ-दस जिलों के नेताओं व कार्यकर्ताओं को बुला लिया गया। उन्हें बूथ व सेक्टर तक जिम्मेदारी दी गई। धन तो पानी की तरह बहाया गया। सरकार व संगठन लगभग अपनी जीत के प्रति पूरा आश्वस्त था। लेकिन सत्ता के नशे में चूर भाजपा नेताओं को यह सुध नहीं रही कि जनता के बीच असल में चल क्या रहा है? वे यह सब देखकर भी आंखें बंद किए रहे कि कोरोनाकाल में इलाज के लिए लोग अस्पतालों में तड़प-तड़प कर दम तोड़ रहे हैं। श्मशान घाटों में शवों का अंबार लगा है। घर-अस्पतालों से निकल रहीं चीत्कारों की आग पर चुनावी जुमलों ने जैसे घी डाल दिया। पूरे प्रदेश में हाहाकार है और दमोह में कोरोना से पीडि़त व मृतकों के आंकड़ों को कम दिखाया गया, जबकि दमोह की हकीकत मध्यप्रदेश के अन्य जिलों से जुदा नहीं थी। मुख्यमंत्री समेत भाजपा नेताओं के काफिले के सामने ही कोरोना में रैली-सभाओं को छूट दिए जाने पर पोस्टर दिखा दिए गए। बावजूद पार्टी इससे निश्चिंत बनी रहीं।
दमोह की जनता सब देख रही थी। वह देख रही थी कि पूरे देश के साथ ही मध्यप्रदेश महामारी से जूझ रहा है। बीमारी से मरने वालों की लाशों के अंबार लग रहे हैं। अस्पतालों में ऑक्सीजन से लेकर दवाओं तक के लिए चीख-पुकार मची है। जनता सब समझ रही थी कि जब वो महामारी से कराह रही है, उसे सरकार की मदद और साथ की जरूरत है, जो नहीं मिली। उसी वक्त मुख्यमंत्री, स्वास्थ्य मंत्री समेत दर्जन भर से ज्यादा मंत्री दमोह में रैलियां करवाते हुए अपनी और अपनी पार्टी, अपने प्रत्याशी की ब्रांडिंग करते रहे। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा पूरे समय दमोह में डेरा डाले नेताओं, कार्यकर्ताओं की बैठकें, सभाएं ले रहे थे। जनता सब देख रही थी कि और बखूभी समझ रही थी कि सरकार को जनता से ज्यादा सत्ता और चुनाव की पड़ी है। पूरे प्रदेश में लॉकडाउन, लेकिन दमोह में सब खुल्लमखुल्ला, चुनावी रैलियां और सभाएं बेहिसाब। प्रचार खत्म होते ही अगले दिन दमोह में कोरोना कफ्र्यू लगा दिया गया। दमोह की जनता सब देख रही थी और इंतजार कर रही थी मतदान का और भाजपा को सबक सिखाने का। और भाजपा को ऐसा सबक सिखाया, जिसका दर्द रह-रहकर तड़पाएगा, सताएगा। क्योंकि …
एहसासों की नमी बेहद जरूरी है हर रिश्ते में,
रेत भी सूखी हो तो हाथों से फिसल जाती है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और विशेषज्ञ सोशल मीडिया एंड शेयर मार्केट हैं)